राशन वितरण के समय शारीरिक दूरी के निर्देश धड़ाम
मेरठ। CoronaEffect राशन वितरण के समय शारीरिक दूरी के निर्देश धड़ाम हो गए हैं। वितरण अभी तो पूरे माह होना है मगर शुरुआती दोनों दिन ने इसका भविष्य बता दिया है। खानापूर्ति को गोले बनवाए गए थे। हाथ धुलने को साबुन रखवाए गए थे। कार्डधारकों को फोन कर बता भी दिया गया था कि किसको किस दिन राशन मिलेगा मगर लोगों को विश्वास नहीं हुआ। उमड़ रहे हैं। किसी को धैर्य नहीं है इसलिए सटकर खड़े हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि इसमें सब नासमझ हैं। कार्ड तो उनके भी बने हैं जो पक्के मकानों में रहते हैं और कार से चलते हैं। दिनभर विद्वता की बात करते फिरते हैं मगर राशन सभी को सरकारी चाहिए और वह भी बिना नियम कायदे के। एकाध जगह पालन भी हुआ है। गुडवर्क में वह शासन तक पहुंचा दिया जाएगा पर हकीकत में शारीरिक दूरी का पालन जरूरी है।
एक्सप्रेस वे के जागरूक मजदूर
नौकरीपेशा या पढ़े-लिखे लोगों से ज्यादा जागरूक तो दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के काम में लगे मजदूर निकले। जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से इससे संबंधित प्लांटों पर करीब 300 मजदूर हैं जो पूरी तरह से नियमों का पालन कर रहे हैं। सैनिटाइजेशन के तहत हाथ धुल रहे हैं और भोजन भी दूर-दूर रहकर कर रहे। शारीरिक दूरी बनी रहे इसलिए एक कमरे में सिर्फ दो ही लोग हैं। प्रतिदिन थर्मो स्कैनर से बुखार नापा जा रहा है। ऐसी जागरुकता सबमें नहीं होती। वैसे तो यह निर्देश कंपनी की ओर से दिए गए हैं पर पालन करने वाले तो श्रमिक हैं। सरकारी निर्देश तो पढ़े-लिखे लोगों ने भी सुना है मगर निभाने की जगह हंसी-मजाक में टाल रहे हैं तभी तो लोग लाख समझाने के बाद भी सड़कों पर टहल रहे हैं। सड़कों पर, गली- मोहल्लों में इधर-उधर समूह में खड़े होकर बेवजह चर्चाएं कर रहे हैं।
भारतीयता वाले भोजन दूत
जब-जब देश में कोई आपदा आई है, देश संकटों से घिरा है तो भूख मिटाने का संकट सबसे पहले आ खड़ा हुआ। तब-तब लोगों ने अनेकता में एकता के रंग को चटख किया है। मदद वाले हाथ अपने आप बढ़ते चले गए। यही भारतीयता की पहचान है। यही पुरातन भारतीय संस्कृति ने सिखाया भी है। कोरोना की इस आपदा ने देश को एक सूत्र में रहने का संकल्प दिलाया है। सिखाया है कि जब भी कोई आफत आए, ऐसे ही हाथ बढ़ जाने चाहिए। शहर से लेकर गांव तक जिस तरह से भोजन दूत इस लॉकडाउन में निकल पड़े हैं, वह काबिले तारीफ है। भूख से व्याकुल लोग हर निवाले के बाद इसी भारतीयता से खुश हैं। हालांकि ऐसे लोग घरों से इसलिए नहीं निकले क्योंकि उन्हें आदेश मानना था। उम्मीद भी थी कि कोई न कोई आएगा। उम्मीदों को पूरा करने दूत निकल पड़े हैं।
मेरठियों, अब जाग जाओ
एक कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत हो गई और दूसरे मरीज की हालत गंभीर है। तमाम और भी पॉजिटिव वाले हैं और ये लोग कितने लोगों के संपर्क में आए होंगे, कहा नहीं जा सकता मगर मेरठ के लोग अभी भी भीड़ में जुटने से डर नहीं रहे हैं। सब्जी मंडी से लेकर दवा बाजार तक खूब भीड़ उमड़ रही है। जरूरत के सामान जरूरी हैं पर उससे भी जरूरी जान है। जिंदगी रहेगी तो सामान फिर मिल जाएगा। घर पर खाने-पीने की सामग्री नहीं है तो उसके लिए तमाम विकल्प हैं, उसे आजमाएं। घर तक सामान पहुंच रहा है, फोन तो मिलाएं। कम से कम लॉकडाउन तक तो मान जाएं। ऐसे नहीं करेंगे तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अब मेरठ के जागने का वक्त है। इस समय जाग गए, धैर्य रखा, तो भविष्य बचा ले जाएंगे। आने वाली पीढ़ी के लिए बड़ा संदेश छोड़ जाएंगे।